Saturday, November 26, 2011

मेरा नंबर कब आयगा ?

बुश पर जो जूता चला उसका सिलसिला ९/११ की घटना से कही आगे आपना 'खोफ' बना गया , डर हर मुल्क के शासन करता को की "मेरा नंबर कब आयगा' . बुश कोई पहल शाशक नहीं जिसे जूता पड़ा हो ! तो फिर एसा क्या हुवा की , सिल्सिया दूर तक चल निकला







मुख्या मंत्री दरबार  सिंह जी पर आज से ३० साल पहले , एक स्कूल टीचर ने अपना रोष थपड मार कर जाहिर किया था , मै इतिहस का यह  पाना इसलिय खोल रहा हू , के जूता या थपड मरने वालो का  वाह , या शोहरत पाने का लक्ष्य प्रापत हुवा ? क्यों के तर्क यही दिया जाता है - सब तमाशा है  , नाम के लिय , शोहरत पाने के लिया - राजनीती मै आने केनिया 



File picture of 1980s of renowned freedom fighter and the chief minister of Punjab, Darbara Singh, attends an official function, in Chandigarh.


अगर हम गूगल की मद्दद ना ले तो शायद हम उन के नाम तक नहीं जानते जीनो ने जूते , थपड का इस्तेमाल किया  , ना नाम हुवा,  ना शोरत - पदवी मिली . तो फिर क्या मकसद होता है ? 


"नोजवानो को गुस्सा आता है " 


यह तरीका गलत है रोष प्रकट करने का - लोकतान्त्रिक  नहीं है , समज में आता है जनता को  , मगर यही हालात बुडापे मे सताय तो बुढा अत्मधा करता है , खुद को फँसी लगता है , लोकतन्त मरता है- यह शाशन करने वालो को  क्या  गुस्सा दिलाता है ?  

 यही  गुस्सा  Rahul  Ghandi  को उत्तेर प्रदश  मै मायावती सरकार पर आता है , तो  राहुल  जूता नहीं   मरते 


लोकतंत्र अगर आज हम सबको बराबर के "सामाजिक -राजनातिक" संसाधन देती तो , याह नोजवान भी गुस्सा  आने पर  थपड नहीं मरते . 

  

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